अमेरिकी फ़ुटबॉल

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भिड़ने के लिए तैयार अमेरिकी फ़ुटबॉल की दो टीमें
खेल के मैदान पर यार्डलाइनें और ग़ज़ों में अंक
अपने किसी आक्रामक साथी को गेंद फेंकने को तैयार एक क्वार्टरबैक
भागता हुआ आक्रामक खिलाड़ी रक्षकों द्वारा पटका गया - अगर यह उठ न सका को यही एक "डाउन" होगा
भिड़ने की शुरुआत में आक्रामक (लाल) और रक्षक (नीले) खिलाड़ियों की मैदान में स्थिति (यह उदाहरण है - हर खेल में यह कुछ अलग होती है)

अमेरिकी फ़ुटबॉल (अंग्रेजी: American football) ग्यारह खिलाड़ियों की दो टीमों के बीच खेला जाने वाला एक लोकप्रिय खेल है जिसमें हर टीम का उद्देश्य है की वह गेंद को दूसरी टीम के "ऍण्ड ज़ोन" (endzone, अंत क्षेत्र) में पहुँचाकर अंक बटोरे।

जिस टीम के पास गेंद पर क़ब्ज़ा होता है, वह गेंद के साथ दौड़कर या अपने साथियों में आपस में गेंद फेंककर उसे विरोधी टीम के ऍण्डज़ोन तक बढ़ाने की कोशिश करती है। अगर उस टीम का कोई खिलाड़ी गेंद पकड़े हुए गोल की लकीर को पार करके विरोधी ऍण्डज़ोन में पहुँच जाता है, या ऍण्डज़ोन के अन्दर खड़ा हुआ अपने साथी द्वारा फेंकी गई गेंद को सफलतापूर्वक पकड़ लेता है या फिर मैदान से गोल की लकीर के पीछे बने दो खम्बों के बीच से गेंद को लात मारकर पहुँचा देता है तो उसकी टीम को अंक मिलते हैं। विरोधी टीम का काम है कि टक्कर मारकर, गिराकर, या बीच में आकर फेंकी गई गेंद को पकड़कर किसी तरह गेंद पर क़ब्ज़ा करे या दुश्मन टीम को अपनी टीम के ऍण्डज़ोन की तरफ़ बढ़ने से रोके।

अमेरिकी फ़ुटबॉल अधिकतर संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में खेली जाती है। इसके खेल को व्यवसायिक स्तर पर नियंत्रित करने वाली संस्थान का नाम "नैशनल फ़ुटबॉल लीग" (National Football League, राष्ट्रीय फ़ुटबॉल संघ) है, जिसे छोटे रूप में ऍन॰ऍफ़॰ऍल॰ (NFL) कहा जाता है। अमेरिका में इस खेल के दो मुख्य रूप हैं, कॉलेज फ़ुटबॉल और व्यवसायिक फ़ुटबॉल, जिनके नियम एक-दुसरे से थोड़े अलग हैं। स्कूलों की उच्च कक्षाओं में भी फ़ुटबॉल खेली जाती है और उसके नियम भी थोड़े भिन्न होते हैं।

मैदान और खिलाड़ी

खेल का मैदान 100 ग़ज़ (यार्ड) लम्बा और 53.3 ग़ज़ चौड़ा होता है। मैदान की लम्बाई के दोनों तरफ़ एक गोल की लकीर होती है, जिसके आगे दस-दस ग़ज़ के ऍण्डज़ोन होते हैं, यानि कुल मिलकर मैदान की लम्बाई 120 ग़ज़ होती है। मैदान में हर पाँच ग़ज़ के फासले पर एक यार्डलाइन (yardline, ग़ज़ की लकीर) नाम की लकीर होती है। हर ऍण्डज़ोन के आख़िर में ज़मीन से 10 फ़ुट की ऊँचाई पर दो खम्बे होते हैं जिन्हें "गोलपोस्ट" (goalpost, गोल के खम्बे) कहा जाता है।

किसी भी समय हर टीम मैदान में अपने 11 खिलाड़ी रख सकती है, लेकिन टीमों को अधिकार होता है कि खेल में किसी भी अंतराल के समय अपना एक या सभी खिलाड़ी बदल दे। इसलिए फ़ुटबॉल एक विशेषज्ञ खिलाड़ियों का खेल है। किसी भी टीम में वास्तव में बहुत से खिलाड़ी होते हैं, जिन्हें तीन प्रकारों में बाँटा जाता है: आक्रमक खिलाड़ी (offensive, ऑफ़ॅन्सिव), रक्षक खिलाड़ी (defensive, डिफ़ॅन्सिव) और विशेष खिलाड़ी (special team, स्पेशल टीम)। कुछ खिलाड़ी तो टीमों में सिर्फ़ इसलिए रखे जातें हैं कि अगर उनके ही हुनर वाले किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो उन्हें उनके स्थान पर डाला जा सके। ज़्यादातर मुक़ाबलों में किसी भी टीम के कई खिलाड़ियों को मैदान में उतरने का मौक़ा ही नहीं मिलता।

जिस टीम के पास गेंद पर क़ब्ज़ा हो, उसे "आक्रामक" (ऑफ़ॅन्स) बुलाया जाता है और जिस के पास न हो उसे "रक्षक" (डिफ़ॅन्स) बुलाया जाता है। आक्रमक टीम के सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी को क्वार्टरबैक (quarterback) कहते हैं। जब आक्रमक और रक्षकों में भिड़ंत शुरू करती है तो इसी का काम है कि तेज़ी से मैदान का मुआइना करके फ़ैसला करे कि आक्रमक टीम का कौन-सा खिलाड़ी गेंद को रक्षक टीम के ऍण्डज़ोन की तरफ़ बढ़ाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में मौजूद है। फिर क्वार्टरबैक उसे गेंद फ़ेंक देता है, या ख़ुद ही भागकर गेंद आगे बढ़ाने की कोशिश करता है।

खेल का समय

खेल का पूरा समय एक घंटा होता है, जिसे चार 15 मिनट कि चौथैयों (quarters, क्वार्टरज़) में बाँटा जाता है। दूसरी चौथाई के बाद (यानि खेल के अर्ध-समय पर) एक 12 मिनट का विराम होता है।[१] खेलते हुए कई बार गेंद रुक जाती है और तब खेल की घड़ी भी रोक दी जाती है। इस से 15 मिनट की चौथाई वास्तव में 45 मिनट से भी अधिक ले सकती है और पूरा एक घंटे का खेल वास्तव में तीन घंटे से भी ज़्यादा चल सकता है। जब खेल टेलिविज़न पर प्रसारित होता है तो इन अंतरालों में प्रसारणकर्ता इश्तेहार दिखाते हैं।

आक्रामकों का बढ़ना

मुक़ाबले की शुरुआत में सिक्का उछाला जाता है और एक टीम को आक्रामक टीम घोषित कर के उन्हें गेंद दे दी जाती है। अब 50 ग़ज़ की लकीर पर (यानि मैदान के ठीक बीच में) दोनों टीमें एक दुसरे से भिड़ने के लिए आमने-सामने लकीरें बनाकर खड़ी हो जाती हैं। आक्रामक टीम का क्वार्टरबैक अपनी टीम के पीछे खड़ा होता है। माहौल ठीक ऐसा होता है कि दो गुट जंग के लिए तैयार हो रहे हों।

खेल शुरू होता है जब गेंद आक्रामक क्वार्टरबैक के हाथों में पहुँचती है। फ़ौरन रक्षक टीम के खिलाड़ी उस तक पहुँच कर उसे ढाने की जिद्दो-जहद में लग जाते हैं। कुछ आक्रामक खिलाड़ी उनसे भिड़कर उन्हें रोकने की कोशिश करते हैं, जबकि बाक़ी आक्रमक खिलाड़ी विरोधी के क्षेत्र में दाख़िल होकर अपने आप को गेंद आगे बढ़ाने के लिए अच्छी स्थिति में डालने की कोशिश करते हैं। क्वार्टरबैक के पास कुछ ही क्षण होते हैं जिसमें उसे फ़ैसला करना होता है: किस साथी को गेंद फेंकें या फिर ख़ुद रास्ता ढूंढता हुआ आगे भागे। कुछ ही क्षणों में उसकी रक्षा करने वाले गिनती के आक्रमक खिलाड़ियों को उनसे जूझने वाले रक्षक खिलाड़ी पटककर या धकेलकर क्वार्टरबैक तक पहुँच जाते हैं। अगर गेंद क्वार्टरबैक के हाथ में हो और उसे दबोच दिया जाए तो इसे "सैक" (sack) कहते हैं और किसी भी क्वार्टरबैक के लिए यह बहुत शर्मनाक माना जाता है। अधिक बार सैक होने का मतलब है की क्वार्टरबैक झड़पों के बीच सोच नहीं पाया: वह कमज़ोर है और आक्रामकों का नेतृत्व करने के क़ाबिल नहीं है।

चाहे क्वार्टरबैक गेंद किसी को फेंके, चाहे ख़ुद उसे लेकर बढ़े, आम तौर से रक्षक थोड़ी ही दूरी पर गेंदवाले आक्रामक खिलाड़ी को ढा ही लेते हैं और गेंद रुक जाती है। इस स्थिति को डाउन (down) कहते हैं। आक्रामकों का काम है की 4 डाउनों में गेंद को कम-से-कम 10 ग़ज़ बढ़ाएँ। अगर वे ऐसा नहीं कर पाते तो रक्षकों को गेंद पर क़ब्ज़ा दे दिया जाता है और रक्षक अब आक्रामक बनते हैं और आक्रामक रक्षक। गेंद का क़ब्ज़ा तब भी बदल जाता है अगर किसी आक्रामक के हाथ से खेलते हुए गेंद छूट जाए और कोई रक्षक उस हिलती हुए गेंद को पकड़ ले (इसे फ़म्बल या "fumble" कहा जाता है) या फिर क्वार्टरबैक किसी अन्य आक्रामक खिलाड़ी को गेंद फेंके और कोई रक्षक बीच में आकर उसे पकड़ ले (इसे इंटरसॅप्शन या "interception" कहा जाता है)। फ़म्बल या इंटरसॅप्शन की स्थिति में जिस रक्षक ने गेंद पकड़ लिया है वह विरोधी के ऍण्डज़ोन की तरफ़ फ़ौरन भागना शुरू कर सकता है और तब तक भाग सकता है जब तक उसे गिराकर दबोच न लिए जाए, मैदान से बाहर न धकेल दिया जाए, या वह ऍण्डज़ोन में पहुँचकर अपने टीम के लिए अंक ही न बना ले।

जब गेंद रूकती है तो यह बड़े ध्यान से मापा जाता है की 100 ग़ज़ के मैदान में यह कौनसे ग़ज़ पर है। अगला खेल मैदान के बीच में उसी ग़ज़ पर शुरू किया जाता है। इस जगह को "भिड़ने की लकीर" (line of scrimmage, लाइन ऑफ़ स्क्रिम्मेज) कहा जाता है। जैसा की कहा गया है, आक्रामक टीम का यही मक़सद है कि चार या उस से कम डाउनों में गेंद 10 ग़ज़ आगे बढ़े। फ़र्ज़ कीजिये के वे दो ही डाउनों में गेंद को 10 ग़ज़ आगे बढ़ा लें। तो कहा जाता है कि वे फिर से पहले डाउन पर हैं और उन्हें अब इस नई स्क्रिम्मेज लकीर से फिर से चार डाउनों में गेंद को 10 ग़ज़ बढ़ाना है। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक आक्रामक रक्षकों के ऍण्डज़ोन तक न पहुँच जाएँ या ग़लती करके विरोधी को गेंद का क़ब्ज़ा न दे दें।

क़ब्ज़ा बदलने पर जो खेल में रुकाव होता है, उसमें खिलाड़ी भी बदल दिए जाते हैं। बहुत से आक्रामक खिलाड़ी दौड़ने में और फेंकी गई गेंद पकड़ने में निपुण होते हैं और अक्सर उनके शरीर हलके होते हैं। बहुत से रक्षक भीमकाय होते हैं और अगर वे दबोच लें या पटक दें तो ज़्यादातर आक्रामक-विशेष खिलाड़ियों के लिए उठाना मुश्किल हो जाता है। अच्छा आक्रामक वही है जिसे क्वार्टरबैक द्वारा फेंकी गई गेंद को बिना ग़लती के पकड़ना आता हो और जो भागते हुए रक्षकों को चकमा देते हुए दुश्मन के क्षेत्र में दूर तक गेंद बढ़ा सके। कुछ आक्रामकों का काम होता है कि वे रक्षकों से भिड़ें ताकि अन्य आक्रामक गेंद आगे ले जा सकें। इनका नाम ही "ऑफ़ॅन्सिव टैकल" (offensive tackle, यानि भिड़ने वाले आक्रामक) होता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

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